RBI Repo Rate Update : रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने अपनी रेपो दर में बदलाव किया है। पहले RBI की रेपो दर 6.50% थी जो अब घट कर 0.25% से 6% हो गयी है। इस घटी रेपो रेट से भविष्य में लोन सस्ते हो सकते है, अगर लोन सस्ते होंगे तो उनकी EMI भी कम होगी। 9 अप्रैल को सुबह 10 बजे आरबीआई Governor Sanjay Malhotra ने इसकी घोषणा की।विस्तार में जाने के लिए ये ब्लॉग पढ़े।
क्या होता है रेपो रेट (Repo Rate)?
अगर आप Rapo Rate के बारे में नहीं जाते है तो आपको बताना चाहूँगा Reserve Bank of India जिस ब्याज दर पर बैंकों को शॉर्ट टर्म में ऋण देता है उसे रेपो रेट कहते हैं। जब RBI रेपो रेट घटाता है, तो बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है, जिससे वे भी आम ग्राहकों को कम ब्याज दर पर लोन दे सकते हैं।
मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी यह बैठक इसलिए भी काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है क्योंकि ट्रंप द्वारा लगाया गया 26 प्रतिशत टैरिफ प्लान आज से भारत में लागू हो रहा है। बताना चाहेंगे मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी में 6 मेंबर्स होते हैं 3 RBI के और बाकी केंद्र सरकार के द्वारा नियोजित किये जाते हैं।
EMI पर कितना पड़ेगा असर?
Rapo Rate में कटौती का सबसे बड़ा फायदा लोन लेने वालों को होगा। मुख्य रूप से फ्लोटिंग रेट पर लोन लेने वाले ग्राहकों को अपनी EMI में तुरंत असर देखने को मिल सकता है।
उदाहरण के लिए:
- अगर आपके होम लोन पर ब्याज दर 9% थी और बैंक इसे 0.25% घटाकर 8.75% कर देता है,
- तो आपको ₹50 लाख के 20 साल के लोन पर लगभग ₹750 से ₹1,000 की मासिक EMI में राहत मिल सकती है।
किन लोन धारकों को मिलेगा सीधा फायदा?
फ्लोटिंग रेट लोन वाले ग्राहकों को तुरंत फायदा मिलेगा।
फिक्स्ड रेट लोन वाले ग्राहकों को फायदा मिलने में वक्त लग सकता है या मिल भी न पाए, क्योंकि उनकी दरें पहले से तय होती हैं।
नए लोन लेने वालों के लिए ये सही समय हो सकता है, क्योंकि अब ब्याज दरें थोड़ी कम होंगी।
क्या आपको अब नया लोन लेना चाहिए?
अगर आप Home Loan या Auto Loan लेने की योजना बना रहे हैं, तो यह समय फायदेमंद हो सकता है। लेकिन सिर्फ ब्याज दरों के आधार पर लोन लेना समझदारी नहीं है। अपने बजट, आय और रीपेमेंट क्षमता को ध्यान में रखकर ही निर्णय लें।
RBI Repo Rate : Conclusion
RBI की Rapo Rate में कटौती आम लोगों के लिए राहत की खबर है। EMI कम होने से मासिक खर्चों में थोड़ी राहत जरूर मिलेगी और अर्थव्यवस्था में भी नई ऊर्जा का संचार होगा। अब यह बैंकों पर निर्भर करता है कि वे इस कटौती का लाभ ग्राहकों तक कितनी जल्दी और कितनी मात्रा में पहुंचाते हैं।